वीर बालक ध्रुव

 

     राजा उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो भार्याएं थीं । राजा उत्तानपाद के सुनीतिसे ध्रुव तथा सुरुचिसे उत्तम नामक पुत्र हुए । यद्यपि सुनीति बडी रानी थी किंतु राजा उत्तानपादका प्रेम सुरुचिके प्रति अधिक था । एक बार राजा उत्तानपाद ध्रुवको गोद में लिए बैठे थे कि तभी छोटी रानी सुरुचि वहां आई । अपने सौतके पुत्र ध्रुवको राजाकी गोदमें बैठे देख कर वह ईष्र्या से जल उठी । झपटकर उसने ध्रुवको राजाकी गोदसे खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोदमें बिठाते हुए कहा, 'रे मूर्ख! राजाकी गोदमें वही बालक बैठ सकता है जो मेरी कोखसे उत्पन्न हुआ है । तू मेरी कोखसे उत्पन्न नहीं हुआ है इस कारणसे तुझे इनकी गोदमें तथा राजसिंहासनपर बैठनेका अधिकार नहीं है । यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करनेकी है तो भगवान नारायणका भजन कर । उनकी कृपासे जब तू मेरे गर्भसे उत्पन्न होगा तभी राजपद को प्राप्त कर सकेगा ।